निर्माता ताहिक हुसैन ने एक फिल्म बनाई थी। साल 1982 में जिसका नाम था दूल्हा बिकता है। ये फिल्म जब सिनेमा घर में पहुंची तो लोगों को विश्वास ही नहीं हुआ कि भारत में ऐसा भी होता है। इसी तरह पहले भी दूल्हों के बिकने पर कई फिल्में बनीं है, लेकिन क्या आपको पता है कि भारत में दूल्हे बिकते हैं। हाँ जी, ये बात सौ फीसदी सही है। दूल्हों की सौदेबाजी होती है बिहार के मिथिलांचल यानी मधुबनी जिले में।
यहां दूल्हों की एक ऐसी मंडी लगती है, जैसे कोई सब्जी, फल या राशन मंडी होती है। दूल्हों की इस मंडी को सौराठ सभा यानी दूल्हों का मेला कहा जाता है। लोग इसे सभागाछी के नाम से भी जानते हैं। मैथिल ब्राह्मणों के इस मेले में देश-विदेश से कन्याओं के पिता योग्य वर का चयन करके विवाह करते हैं। इतना ही नहीं यहां योग्यता के हिसाब से दूल्हों की सौदेबाजी भी होती है। ये 9 दिनों तक चलने वाले इस मेले में पंजिकारों की भूमिका सबसे महत्वपूर्ण होती है।
यहां जो संबंध तय होते हैं, उसे मान्यता पंजिकार ही देते हैं। पंजीकरण में पिता पक्ष और ननिहाल पक्ष के 7 पीढ़ी तक के संबंधों को देखा जाता है। किसी तरह का संबंध रहने पर वर-कन्या का विवाह नहीं होता है, क्योंकि पडितों के हिसाब से उनकी नाड़ी समान होती है। जानकारों के अनुसार यह मेला लगभग 700 साल पहले शुरू हुआ था। और साल 1971 में यहां लगभग 1.5 लाख लोग विवाह के समंबंध में आए थे।
लेकिन वर्तमान में आने वालों की संख्या में काफी कम हो गई है। इस मेले के बारे में लोग बताते हैं कि राजा हरि सिंह देव ने दहेज प्रथा को रोकने के लिए इस मेले की शुरुआत की थी, लेकिन बाद में इस मेले में लड़की पक्ष वाले वर की योग्यता के हिसाब से मूल्य निर्धारित करने लगे। इस वजह से इसका महत्व कम होने लगा है और आज ये मेला अपनी आखिरी सांसे गिन रहा है। खबर अच्छी लगे तो अगली खबर के लिए फॉलो या सब्सक्राइब करें।
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