सरकारी स्कूल में पढ़ा लड़का, वेटर से IAS कैसे बना

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तमिलनाडु के वेल्लोर जिले के विनाव मंगलम गांव के रहने वाले के जयगणेश अपने एक भाई और दो बहनों में सबसे बड़े थे। उनके पिता लैदर फैक्ट्री में सुपरवाइजर थे। 4500 रुपए की नौकरी करके अपने परिवार को पालन-पोषण करते थे।
के जयगणेश ने 8वीं तक गांव के सरकारी स्कूल में ही पढ़ाई की और बाद में पास के कस्बे में पढ़ने जाने लगे। दसवीं के बाद उन्होने पॉलिटेक्निक कॉलेज में पढ़ाई की और 91 फीसदी अंकों से इंजीनियरिंग में प्रवेश किया और मैकेनिकल इंजीनियर बन गये।
इंजीनियरिंग के बाद जयगणेश की इच्छा थी कि कोई नौकरी कर लें, परिवार की हालत देखते हुए यहीं जरूरी लगा। साल 2000 में इंजीनियरिंग करने के बाद जयगणेश जॉब की तलाश में बेंगलुरु आए। यहां उन्हें 2500 रुपए महीने की एक कंपनी में नौकरी मिल गई।
जयगणेश बताते हैं कि उन्हें सिविल सर्विस के बारे में पहले ज्यादा जानकारी नही थी। बेंगलुरु आकर मालूम हुआ कि कलेक्टर ऐसा अधिकारी होता है, जो गांवों के लिए बहुत कुछ कर सकता है। बस यहीं से तय कर लिया कि अब आईएएस बनना है। नौकरी छोड़ गांव लौट आए।
उस समय 6500 रुपए उन्हें बोनस मिला था जिससे पढ़ने लिए किताबें आदि खरीदी। गांव में रहकर पढ़ना शुरू किया। बाद में जयगणेश को चेन्नई में सरकारी कोचिंग के बारे में पता चला तो उन्होंने इसके लिए टेस्ट दिया और पास हो गए। इसमें उन्हें जरूरी सुविधाएं और ट्रेनिंग मिलने लगी।
कोचिंग के बाद गांव न आकर चेन्नई में ही वह पढ़ाई करना चाहते थे, लेकिन कोई जॉब नहीं मिल सकी। सत्यम सिनेमा की कैंटीन में उन्हें बिलिंग क्लर्क का जॉब मिला। इंटरवल में वह वेटर का भी काम करते थे। जयगणेश ने बताया कि उन्हें कभी भी इस बात की चिंता नहीं हुई कि वह एक मैकेनिकल इंजीनियर होकर यह काम कर रहे हैं।
लक्ष्य था कि चेन्नई में रहकर सिविल सर्विस की तैयारी की जाए। वह छह बार सिविल सर्विस में फेल हुए, लेकिन हार नहीं मानी। वह 2008 में सातवें प्रयास में आईएएस बने और वह भी 156 वीं रैंक के साथ। वह ऐसे छात्र थे, जिसने गांव के सरकारी स्कूल से पढ़ाई करके आईएएस बनने का मुकाम हासिल किया। खबर अच्छी लगे तो अगली खबर के लिए फॉलो करें।

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